टूट जाना भी मेरा वाज़िब है।

टूट जाना भी मेरा वाज़िब  है,
लोग ठोकर पे ठोकर देते हैं।
रूठ जाना भी मेरा वाज़िब है,
लोग रह-रह कर चोट देते हैं।

मैं भला दर्द, दिल का, कहूं किससे,
मैं बता? बात दिल की, कहूं किससे,
यार आए भी कितने, राहों में
लोग रह-रह कर, वजूद खोते हैं।
टूट जाना भी मेरा वाज़िब है,
लोग ठोकर पे ठोकर देते हैं।

मैं भी ज़िंदा हूं, है मेरा भी दिल
ख़्वाब मेरे भी, बेवजह न थे।
कुछ तो किस्मत ने साथ छोड़ा था,
लोग पल भर में छोड़ देते हैं।
टूट जाना भी मेरा वाज़िब है,
लोग ठोकर पे ठोकर देते हैं।

– आकाश त्रिपाठी जानू